Monday, June 8, 2009

काफिले में बना दी हमने एक poem प्यारी

My Friend and I were chatting ... we started talking in kafila ... which accounts for this poem.


सब कुछ सीखा हमने सीखी होशियारी, सच है दुनियावालों की हम हैं अनाडी
क्या बात है इतनी सी बात पे तुमने शायरी लिख डाली, और हम कबसे समझा रहे थे गाते हुए कवाली
हे भगवन !!!! ये क्या काफिला था इससे अच्छा तो मैंने जोड़ दिया था
कोई ना start लेने के लिए कुछ तो कहना
था
इस दुनिया के जालिम तानो को सहना था
जब आपको चुपके से पैमाने को पीना था
और बनाना इन मुश्किलों को किस्मत का गहना था
नजाने सब ने तुम्हारे जज्बातों को इस तरह सरे बाज़ार क्यूँ उछाला
और निकल दिया मेरी इज्ज़त का हवाला
बेचारा इस चक्कर में पिस गया वो चक्कीवाला
था दिखने में जो बड़ा काला
वो बोला रहिमन ऐसा कहिये ..... दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोईसाबुत बचा न कोई ... देख कर बोला ग्राहक आते से ज्यादा तो दिखता है चावलधमकी देकर गया वो संभाल ले अपनी धोती मैं फिर आऊंगा कलकल को किसने देखा है बोला वो चक्की वालाकाल करे सो आज कर आज का अभी कर डालातुझे मारने का महूरत निकलवाता हूँ, पंडित कहाँ गया साला ...पंडितजी बोले शांत रहो वत्स, चावल और आते में कैसी बहसग्राहक बोला no ifs no buts only JATअब्बे !!!!!बहुत हो गया तेरा चल तू यहाँ से कटऐसे कैसे कहा तुमने..understand my feelins firstबहुत हो गया मेरे भाई तुम दोनों न करो लडाईमैं अभी चावल को आटा बना देता हूँ भाईझूट मत बोल.... सच बता ये बात किसने बढाईमाफ़ कर दे भाई मैं हूँ कबीर का fanऔर न कर non veg बातें मैं भी हूँ Jainलीजिये अपना आटा और दो मुझको चैन

2 comments:

  1. Kya baat hai...!!! Maan gaye apko aur apke dost ko! Waise yeh apke takkar aa kaun gaya....!!!?

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  2. interesting attempt!!
    by the way it is kafiya- which means to speak in rhymes not kafila- which means a caravan.

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