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Tuesday, August 13, 2013

लाल

लाल सी लालिमा किसी और रंग में है कहाँ?
सुर्ख सा मदिरा में खुशी छलकाता हुआ
भोर में सूरज को जीवन देता
ये लाल रंग, वो लाल रंग
सुहागन का स्वप्न अपनी गोद मे समेटता हुआ
दुर्गा के दुर्ग की चारदीवारी को रंगता
ये लाल रंग, वो लाल रंग
अचल सा शव में खौफ़ दिखलता हुआ
क्या सौभाग्य की निशानी, या है जंजीरों का रंग
ये लाल रंग, वो लाल रंग |

तब और अब

धरती से जोड़ती थी,
आलती-पालती और खाने की थाली
आष्टा-चंगा-पे और लंगड़ी-पुआ
नानी का घर और छत का बिस्तर |
अब बस ज़मीन के कुछ ऊपर है,
कुर्सियों से लटकते पैर और Frozen food
SAP और Solitare
Sleepwell का गद्दा और निद्राहीन रातें |

Monday, August 17, 2009

आरक्षण की महिमा


गुर्जरों ने किया फिर से धमाल, जिससे हुआ सारा देश बेहाल
कर्नल ने बोला चलो यारों आग लगातें हैं
आरक्षण के इस मुद्दे पर जातीवाद फैलाते हैं
आओ साथ मिलकर बंधी का त्यौहार मनाएं
रेल की पटरी पर चलो मिल के आशियाना बनाएं
तालों का लटकना, रैली की बहार
बसों को आग लगाना, मार-पीट के समाचार
रेलों को रोकना, ना होना आम लोगों का विचार
मुबारक हो गुर्जर भाइयों आपको बंधी का त्यौहार
हैरान हुई दुनिया सारी, करोडों का नुक्सान हुआ
आरक्षण की इस महिमा से सारा देश निहाल हुआ
गुर्जरों की इस जिद के आगे "वसुंधरा" को झुकना पड़ा
जनरल में से 5 फिसिदी आरक्षण देना ही पड़ा
बड़े गुर्जर नेता तो अभी भी महलों में रहते हैं
अधिकतर गुर्जर अभी भी झोपडों में सोते हैं
आरक्षण से भला क्या होगा लाभ?
जब बालक आज भी पोथी-पाठी छोड़ गाय-भैसों को चराते हैं?
इस आरक्षण की पचडे में
कही उच्च शिक्षा वाला ना पिछड़ जाये
और गंवार इस देश का शासक ना बन जाये
क्या आरक्षण से ही होगा इस देश का उद्धार?
फिर भी "धन्य! धन्य!" आरक्षण तेरी महिमा अपरम्पार

लाडली


लाड़ों से पली कलिओं सी खिली
होती
है ऐसी सबकी लाडली
माँ
की दुलारी, मैय्या की प्यारी
पापा
की आँख का तारा लाडली
चूडियों
की खनक से सबको मुस्कान दे जाती है
पायल
की झनक से आँगन महकाती है लाडली
आता
है जब विदाई का समय
आंखों
में आँसू लिए सबको खला जाती है लाडली
परायों
को अपना कर हर रिश्ता निभाती है लाडली
इतनी
कुर्बानियों के बाद भी
क्यों
जला दी जाती है लाडली
इतनी
मासूमियत के बाद भीक्यों छीन लिया जाता है उसका आँचल?
क्यों
मार दी जाती है उसकी आत्मा?
क्या
है कोई जवाब इसका की क्यों
अब
भी वो दरिन्दे फिरते हैं सड़कों पर खली
और
कहाँ खो जाती है हमारी वो लाडली

Wednesday, August 20, 2008

मुखौटे



मुखौटा हर चेहरे पर दिखाई पड़ रहा है
कोई ख़ुशी कोई ग़म का पहने है
हर शख़्स अपने आप को अपने से छुपा रहा है
किसी ने अपने आपको ख़्वाबों की दुनिया में बसा रखा है
कोई इस दुनिया की भीड़ में खोया है हर किसी के लिए मुखौटा उतारना मुश्किल है
इन मुखौटों के पीछे हर शख़्स का असली चेहरा ढूँढती हूँ
पर मेरी आँखें भी धुंधली हैं
क्योंकि एक मुखौटे के पीछे मैं भी हूँ
मैं भी लाचार हूँ , इस मुखौटे को ख़ुद से अलग नहीं कर पा रही हूँ
बस भीड़ में मैं भी चली जा रही हूँ