चलते हैं अकेले किसी रास्ते पर
और साथ है बस एक हमसफ़र - मेरी तनहाई
तनहाई के इस आलम में पुरानी यादें हमें दिखीं
पर हम इस मुसाफ़िर से मिल नहीं पाए
क्यूँकि बात करने से पहले ही वो बिछड़ गए
ज़िन्दगी तो मिलने और बिछड़ने का नाम है
ना जाने इसका क्या मुकाम है
अन्जाम की परवाह किए बिना
इस राह पर चला जा रहा हूँ
दिल रो रहा है फिर भी मुस्कुरा रहा हूँ
तनहाई के इस आलम में पुरानी यादें हमें दिखीं
पर हम इस मुसाफ़िर से मिल नहीं पाए
क्यूँकि बात करने से पहले ही वो बिछड़ गए
ज़िन्दगी तो मिलने और बिछड़ने का नाम है
ना जाने इसका क्या मुकाम है
अन्जाम की परवाह किए बिना
इस राह पर चला जा रहा हूँ
दिल रो रहा है फिर भी मुस्कुरा रहा हूँ
now here is a typical 'kavi' stuff... with all the 'dard' and 'samvedna' of a heartbroken kavi who is trying to find his own way...
ReplyDeletethis poem is better than other poem of the same genre by other authors because its short and right on target... great stuff... keep this gud stuff up...
great
ReplyDelete